माहेश्वरी समाज का निशान- मोड़
(Mod, Symbol of Maheshwari community)
5149 वर्ष पूर्व (ई.स. पूर्व 3133) में जब भगवान महेशजी और माता पार्वती के कृपा से 'माहेश्वरी' समाज की उत्पत्ति हुई थी तब भगवान महेशजी ने महर्षि पराशर, सारस्वत, ग्वाला, गौतम, श्रृंगी, दाधीच इन छः ऋषियों को माहेश्वरीयों का गुरु बनाया और उनपर माहेश्वरीयों को मार्गदर्शित करने का दायित्व सौपा l कालांतर में इन गुरुओं ने ऋषि भारद्वाज को भी माहेश्वरी गुरु पद प्रदान किया जिससे माहेश्वरी गुरुओं की संख्या सात हो गई जिन्हे माहेश्वरीयों में सप्तर्षि कहा जाता है l सप्तगुरुओं ने भगवान महेशजी और माता पार्वती की प्रेरणा से इस अलौकिक पवित्र माहेश्वरी निशान (प्रतिक-चिन्ह) और ध्वज का सृजन किया l इस निशान को 'मोड़' कहा जाता है जिसमें एक त्रिशूल और त्रिशूल के बीच के पाते में एक वृत्त तथा वृत्त के बीच ॐ (प्रणव) होता है l माहेश्वरी ध्वजा पर भी यह निशान अंकित होता है l केसरिया रंग के ध्वज पर गहरे नीले रंग में यह पवित्र निशान अंकित होता है, इसे 'दिव्यध्वज' कहते है l दिव्य ध्वज माहेश्वरी समाज की ध्वजा है l गुरुओं का मानना था की यह ध्वज सम्पूर्ण माहेश्वरियों को एकत्रित रखता है, आपस में एक-दुसरेसे जोड़े रखता है l "सर्वे भवन्तु सुखिनः" यह माहेश्वरीयों का बोधवाक्य है l सर्वे भवन्तु सुखिनः अर्थात केवल माहेश्वरियों का ही नही बल्कि सर्वे (सभीके) सुख की कामना का यह सिद्धांत माहेश्वरी संस्कृति के विचारधारा की महानता को दर्शाता है l
गुरुओं द्वारा किया गया यह बहुत बड़ा, ऐतिहासिक एवं शाश्वत कार्य है। यह माहेश्वरीयों का, माहेश्वरी समाज का दुर्भाग्य है की जाने-अनजाने में माहेश्वरी समाज अपने गुरूओंको भूलते चले गए, अपने मूल निशान को भूलते चले गए l परिणामतः समाज को उचित मार्गदर्शन करनेवाली व्यवस्था ही समाप्त हो गई जिससे समाज की बड़ी क्षति (हानि) हुई है और आज भी हो रही है l माहेश्वरी समाज का यह अलौकिक, दिव्य निशान "मोड़" लगभग विस्मृत हो चला है l माहेश्वरी समाज के लिए कार्य करनेवाले अलग-अलग संगठनों के, अलग अलग संस्थाओं के सिम्बॉल अलग अलग हो सकते है लेकिन 'मोड़' यह सकल (समस्त) माहेश्वरी समाज का प्रतिक-चिन्ह (Symbol of Maheshwari community) है l हमारे इस अलौकिक 'माहेश्वरी निशान' का प्रचार-प्रसार हमें जितना हो उतना अधिकाधिक करना चाहिए l